सफलता व्यक्ति के संपूर्ण जीवन का निचोड़ है और यह सफलता व्यक्तित्व के विकास से ही मनुष्य जीवन में प्रवेश करती है। व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में शिक्षा एक अहम भूमिका का निर्वहन करती है। शिक्षा ही एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से व्यक्ति के अंतर्मन में नैतिकता, मूल्य व ज्ञान प्रवेश करती है जिसके माध्यम से यह ज्ञात होता है कि उसे लोगों के साथ कैसा व्यवहार करना है और कैसा नहीं करना है। मनुष्य अपने जीवनकाल में उत्कृष्ट शिक्षा की प्राप्ति कही न कही उच्च आत्मप्रभावकारिता के ही कारण प्राप्त करता है। ज्यादातर व्यक्ति सफलता प्राप्त करने के लिए अथक प्रयास करते हैं उनके अंतर्मन में सफलता के लिए प्रयास की भावना अपने इर्द-गिर्द के वातावरण से ही देखकर आती है कि उन्हें भी अपने जीवन में सफलता का स्वाद चखना है लेकिन उस सफलता के लिए व्यक्ति का आत्मप्रभावकारिता स्तर उच्च होना चाहिए तभी वह अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है । उसी प्रकार विद्यार्थी भी अपने विद्या अध्ययन काल के दौरान सफल होने का प्रयास करते हैं। विद्यार्थियों की शैक्षणिक सफलता उनके जीवन काल का एक सकारात्मक परिणाम है जो उनके प्रगति के मार्ग को दर्शाता है जिसके अंतर्गत उनका शैक्षणिक प्रदर्शन व व्यक्तिगत विकास दोनों सम्मिलित है। आत्मप्रभावकारिता विद्यार्थियों के अपने क्षमता में विश्वास को दर्शाता है उन्हें खुद पर भरोसा है कि वह किसी भी कठिन से कठिन कार्य को संपन्न कर सकते हैं । ऐसे छात्र एवं छात्राएं कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अत्यधिक धैर्य व आत्मविश्वास बनाएं रखते हैं जिसका परिणाम यह होता है कि वह अपने लक्ष्य से अधिकांशतः चूकते नहीं अगर चूक भी गए तो अपने गलतियों से सीख कर दुबारा सफलता प्राप्त करते हैं। इस शोध के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि उच्च आत्मप्रभावकारिता से विद्यार्थियों को सफलता की प्राप्ति के प्रति उत्साह होगा जबकि निम्न आत्मप्रभावकारिता उनको असफलता और निराशा के गर्त की तरफ ले जायेगी। अतः शोध पत्र के माध्यम से यह दर्शाया गया है कि विद्यार्थियों के अंतःकरण में आत्मप्रभावकारिता को कैसे विकसित किया जाए उसके साधन या स्रोत क्या हैं उनका वर्णन किया गया है।
संजनी कुमारी
55-58
08.2025-27425367