AD EDUXIAN JOURNAL

(A QUARTERLY MULTIDISCIPLINARY BLIND PEER REVIEWED & REFEREED ONLINE INTERNATIONAL JOURNAL)

YEAR: 2024

E- ISSN:3048-7951

पूर्व मध्यकालीन भारत में स्त्रियों की दशा

Abstract

समाज में स्त्रियों के प्रति उस समाज की मनोधारणा का सामाजिक महत्व होता है। किसी भी सभ्यता के विकसित स्वरूप को समझने तथा उसकी सीमाओं का मूल्यांकन करने का सर्वोत्त्म उपाय यह है कि तत्कालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति का अध्ययन किया जाय।1 भारतीय समाज में क्रमश: होने वाले राजनैतिक परिवर्तन के फलस्वरूप स्त्रियों की स्थिति में भी परिवर्तन हुआ। वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति सम्मान जनक थी। वह प्रत्येक सामाजिक, धार्मिक एवं बौद्धिक क्षेत्र में भाग लेती थी।2 वैदिक साहित्य में नारी को देवी के रूप में प्रस्तुत किया गया।3 परिवर्ती युग यद्यपि नारी जीवन में कुछ गिरावट आई किन्तु उनका सामाजिक जीवन अधिक स्वतंत्र था।4 हिन्दू काल में स्त्रियों की स्थिति मुस्लिम कल की अपेक्षा अच्छी थी।5 मुस्लिम युग में स्त्रियों की स्थिति में निरंतर गिरावट आती गई। समकालीन विवरण से ज्ञात होता है कि समाज में पर्दा प्रथा प्रचलित थी। पुत्री के रूप में उसे पिता, स्त्री के रूप में पति तथा विधवा हो जाने पर बड़े पुत्र के संरक्षण में जीवन यापन करना पड़ता था। समाज में प्रचलित बाल- ह्त्या,, बहु विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा तथा पर्दे की प्रथा का प्रचलन था। मुस्लिम आक्रामकों के अमानवीय कृत्यों के भय के फलस्वरूप हिन्दू समाज में जौहर जैसी प्रथा का भी प्रचलन हो गया था। जिसने नारी जीवन को अत्यंत दयनीय बना दिया था।6 मुस्लिम समाज स्त्रियों को स्वतन्त्रता प्रदान करने के पक्ष में नही था।7 मुस्लिम समाज में बाल-विवाह, बहुविवाह तथा तलाक की प्रथा का प्रचलन था। हिन्दू और मुस्लिम दोनों की परिवारों में कन्या जन्म को अप्रसन्नता की दृष्टि से देखा जाता था। अमीर खुसरो लड़की पैदा होने पर दु:ख प्रकट करता है तथा उसे पर्दे में रहने की सलाह देता है।8 लड़की परिवार के लिए अनचाहा मेहमान समझी जाती थी।9 राजपूत परिवार में उस माता को हेय की दृष्टि से देखा जाता था। जिसके गर्भ से लड़की उत्पन्न होती थी। प्रसव काल में न उसकी समुचित देखभाल की जाती थी और न ही नवजात शिशु का सत्कार किया जाता था।10 मध्यकाल से पूर्व बाल ह्त्या का प्रचलन नहीं था।11 आलोच्य काल में इसका उल्लेख मिलता है। हिन्दू मुख्यता राजपूत12 प्राय: जन्म लेते ही कन्या को अफीम आदि खिलाकर मार डालते थे।13 दहेज प्रथा का प्रचलन राजपूतों में अधिक था। राजपूत विवाह का खर्च उठाने में असमर्थ होने के कारण अपनी कन्याओं को जन्म लेते ही मौत की नींद सुला देते थे। कर्नल टाड ने सविस्तार कन्या शिशु ह्त्या के कारणो का उल्लेख किया हैं।14 सल्तनत काल के हिन्दू परिवारों में बाल विवाह का प्रचलन था। माता-पिता अपनी कन्याओं को विवाह बाल्यावस्था में सम्पन्न कर अपने को भाग्यशाली समझते थे। बंगाल में 9 वर्ष की उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती थी।15 कभी-कभी समाज में दहेज से छुटकारा पाने हेतु माता-पिता लड़कियों का अपहरण कर लेते थे। इस भय से भी हिन्दू माता-पिता अपनी लड़कियों का शादी पाँच या छ: वर्ष में कर देते थे।16 बाल विवाह के प्रचलन में मुस्लिम सैनिकों के आतंक पूर्ण कार्य ने अधिक योगदान दिया। मुस्लिम सैनिक प्राय: अविवाहित लड़कियों को विवाह कम उम्र में ही सम्पन्न कर भावी आपदाओं से छुटकारा पा जाते थे।17 मुस्लिम समाज में भी बाल विवाह का उल्लेख मिलता है विवाह के समय राजकुमार खिज्रखान की उम्र 10 वर्ष तथा देवल रानी की उम्र 8 वर्ष थीं।18 सुल्तान फिरोज तुगलक के शासनकाल में अमीर अपनी पुत्रियों की शादी अल्पावस्था में कर देते थे। पुत्रियों की शादी के लिए राजकोष से धन प्राप्त होता था।

Keynote: पूर्व मध्यकालीन सभ्यता, भारत में स्त्रियों की दशा

Acceptance: 25/10/2024

Published: 14/12/2024

Writer Name

डॉ० अलीम अख्तर खाँ

Pages

295-307

DOI Numbers

02.2025-54173644