शिक्षा विद्यार्थी के केवल शैक्षिक विकास तक ही सीमित नही है, बल्कि वह विद्यार्थी का मानसिक सामाजिक, संवेगात्मक विकास भी करती है। संवेगात्मक परिपक्वता वह क्षमता है जब व्यक्ति अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना सीख लेता है चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, वह अपने संवेगों का सही प्रबंधन करना जानता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। परन्तु क्या आज के आधुनिक युग में विद्यार्थी अपने संवेगों को नियंत्रित कर पा रहे है? क्या विद्यार्थियों की संवेगात्मक परिपक्वता उनकी शैक्षिक सफलता को प्रभावित कर रही है? संवेगात्मक परिपक्वता के अभाव में विद्यार्थियों में अनैतिक मूल्य तो विकसित नहीं हो रहे है? या इसके विपरीत जिन विद्यार्थियों में संवेगात्मक परिपक्वता पाई जाती है, वह विद्यार्थी निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है एवं समाज उन्हें पसंद करता है तथा वे समाज के साथ मजबूत सम्बन्ध स्थापित करते हुए अपने शैक्षिक लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर पा रहें है। यह जानने के लिए, संवेगात्मक परिपक्वता एवं शैक्षिक उपलब्धि से सम्बंधित शोध अध्ययनों को करने की आवश्यकता है। इसलिए इस समीक्षात्मक शोध पत्र में संवेगात्मक परिपक्वता की व्यापक समझ और शैक्षिक उपलब्धि के मध्य सम्बन्ध को पूर्व में किये गये शोध कार्यों के आधार पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। समीक्षा के लिए पूर्व में किये गये कुल 15 शोध अध्ययनों को शामिल किया गया है। शोध अध्ययनों के निष्कर्षों से ज्ञात हुआ है कि शैक्षिक उपलब्धि पर संवेगात्मक परिपक्वता का धनात्मक एवं सार्थक प्रभाव पड़ता है। संवेगात्मक रूप से परिपक्व विद्यार्थी अपने संवेगों को नियंत्रित एवं प्रबंधित करते हुए जीवन के समस्त उतार-चढ़ाव को धैर्य एवं सहनशीलता के साथ स्वीकार करते हैं और अपने मानवीय मूल्यों के आधार पर निरंतर आगे बढते रहते हैं, जबकि इसके विपरीत जो विद्यार्थी संवेगों पर नियंत्रण करने में असमर्थ होते है, वे जीवन के विभिन्न संघर्षों में ही उलझे रह जाते हैं और अपने लक्ष्य से भटक जाते है।
विजय शर्मा और डॉ. शशि रंजन
212-220
05.2025-51894732