1917-1922 के गाँधी युग का ध्यान आते की मेरी आँखो के सामने एक तस्वीर तैरने लगती है। अपना होष संभालने के बाद मैंने बहुत से आंदोलन देखे है, लेकिन मैं पुरे निष्चय के साथ कह सकता हूँ कि किसी और आंदोलन ने भातरीय समाज में इतनी उथल, पुथल पैदाना नही की जितनी कि चम्पारण आंदोलन से लेकर असहयोग आंदोलन ने की गरीबो की झोपड़ियो से लेकर ऊँचे महलो तक सब कुछ जैसे डोल रहा था गुजायमान हो रका था। बिहार के राश्ट्रीय आंदोलन में असहयोग आंदोलन एक नया मोड़ था। असहयोग आंदोलन के दौरान और उसके बाद राश्ट्रीय आंदोलन षिक्षित वर्गो तक ही सिमित नही रहा और उसने जन आंदोलन का रूप अख्तियार कर लिया। बिहार में राश्ट्रवाद पर वर्तमान लेखन निसंदेह महत्वपूर्ण है, लेकिन उसमें आंदोलन का बड़ा सामान्य सा विवरण दिया गया है और उसकी जटिलता पर कोई ध्यान नही दिया गया है। इन विवरणों में राश्ट्रवाद को गया सुविख्यात ऐतिहासिक घटनाओं के इर्द-गिई घुमती है। इसके अलावा इस लेखन का पुरा फोकस काँगे्रस और उसके नेताओं की भूमिका पर है सब घटनाओं को भूमिका को हाषिए पर डाल दिया गया है। बिहार में राश्ट्रबाद के बाद के चारण पर कुछ महत्वपूर्ण काम हुआ है। लेकिन बिहार में राश्ट्रीय आंदोलन के पहले चरण पर कोई सघन अध्यान नही हुआ है। इसलिए यह अध्यान महत्वपूर्ण हो जाता है। राश्ट्रवाद के बारे में इतिहास लेखन पर फिरस से विचार की दृश्टि से भी यह अध्यान महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वह चरण था जब राश्ट्रीय आंदोलन षिक्षित वर्गो के दायरे से बाहर निकलकर जन आंदोलन बन गया था।
Dr. Pappu Thakur
114-121
02.2025-77958617