शिक्षा का उद्देश्य मात्र साक्षर करना नहीं बल्कि बालक में अन्तनिर्हित विशिष्ट गुणों को पहचान करते हुए व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करना है एवं बालक में विभिन्न गुणों जैसे नैतिकता, आत्मविश्वास, स्वाभिमान, सद्व्यवहार, विनम्रता, मौलिक चिन्तन, सृजनात्मक क्षमता, नेतृत्व क्षमता, त्याग, सहनशीलता आदि का विकास करना है। प्राचीन कल से ही हमारे ऋषि- मुनि इस तथ्य से अवगत थे कि शिक्षा के माध्यम से ही मानव का सर्वोतोन्मुखी विकास सम्भव है अतः उन्होंने शिक्षा की जिस व्यवस्थित तथा प्रशंसनीय शिक्षा प्रणाली का प्रतिपादन किया उस पर हमें आज भी गर्व है। हमारे वैदिक ज्ञान को विश्व ने सदैव स्वीकारा है किन्तु शिक्षा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए सम्पूर्ण शैक्षिक व्यवस्था का पुनरावलोकन कर इसे वर्तमान की आवश्यकता के अनुरूप बनाने हेतु हमें शिक्षा के उद्देश्यों को पुनः परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है।
डॉ0 आभा सिंह
19-22
05.2025-49643652