AD EDUXIAN JOURNAL

(A QUARTERLY MULTIDISCIPLINARY BLIND PEER REVIEWED & REFEREED ONLINE INTERNATIONAL JOURNAL)

YEAR: 2024

E- ISSN:3048-7951

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : राष्ट्र निर्माण की ओर

Abstract

शिक्षा समाज एवं राष्ट्र को विकसित करने तथा प्रगतिशील बनाने का आधार है । मानवीय क्षमताओं का मूलभूत विकास शिक्षा से ही होता है । इसके द्वारा सम्पूर्ण जीवन के विकास की नींव रखी जाती है, जो खुशहाल समाज का भविष्य तैयार करती है । समाज में समयानुसार परिवर्तन होना एवं उसे स्वीकार करने का ज़ज्बा शिक्षा द्वारा ही पैदा होता है । इसी प्रकार, वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था में भी परिवर्तन की ज़रूरत पड़ती है । इसी परिवर्तनकारी एवं सुधारवादी दृष्टि का मूर्त रूप ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020’ में समाहित है। हमारे राष्ट्र के लिए इस नीति का लागू होना बड़ा ही गर्व और हर्षोल्लास का विषय है। शिक्षा नीति 1968 एवं 1986 (यथा संशोधन 1992) के बाद आज़ाद भारत की यह तृतीय नीति 2020 है जो कि 34 वर्षों के एक लंबे अरसे के पश्चात् देश की शैक्षिक संरचना एवं प्रणाली को राह प्रदान कर रही है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2015 में अपनाए गए ‘सतत विकास एजेंडा 2030’ के लक्ष्य 4 में वैश्विक स्तर पर 2030 तक ‘सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन-पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने’ की बात कही गई है । यानी समान एवं समावेशी शिक्षा के लिए सामाजिकार्थिक रूप से वंचित व हाशिए पर रह रहे समूहों, बालिकाओं, सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले बच्चों पर जोर दिया जा रहा है। इन्हीं लक्ष्यों के दृष्टिगत इस नीति के तहत ‘सबके लिए शिक्षा’ की आसान पहुंच, गुणवत्ता, वहनीयता एवं जवाबदेही के आधारभूत स्तंभ सुनिश्चित किए जा रहे हैं और वैश्विक दृष्टिकोण का समावेशन स्थानीय स्तर पर किया जा रहा है । इस नीति में विद्यालयी शिक्षा स्तर से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक कई अहम बदलाव हो रहें हैं, जिसमें कि मानवीय विकास (प्रगति), ज्ञान प्राप्ति, गहन सोच, बुद्धि लब्धि, संवेगात्मक लब्धि, सामाजिक लब्धि, भावनात्मक बोध, रचनात्मकता, संचार, उत्सुकता, संवेदनशीलता, मानव मूल्य, जीवन शिक्षा, सार्वभौमिक रूप से सीखना, जीवन पर्यंत शिक्षा और जिज्ञासा की भावना आदि के विकास पर अधिक ज़ोर है । इसके स्वरुप का मसौदा डॉ कस्तूरीरंगन के अगुवाई में तैयार किया गया है । यह नीति पिछले 3 दशकों से अधिक समय में हमारे देश, समाज की अर्थव्यवस्था और दुनिया में बड़े पैमाने पर हुए कई महत्वपूर्ण बदलाव के साथ प्रतिस्थापित हो रही है । शिक्षा का एक उद्देश्य आत्मज्ञान है। दूसरा उद्देश्य मानव के साथ अच्छे संबंध स्थापित करना, तीसरा उद्देश्य नागरिक के उत्तरदायित्वों को समझना और चौथा उद्देश्य आर्थिक सुरक्षा प्राप्त करना है। इस प्रकार, व्यक्ति अपनी योग्यता को समझ कर तथा उसका सफल उपयोग करके शैक्षिक विकास करता है। अत: 21वीं शताब्दी के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों तथा देश की जरूरतों के अनुरूप शिक्षा के हर क्षेत्र में सुधार लाने की अपेक्षा है । इसलिए इस शिक्षा नीति में समतामूलक समाज, गुणात्मक, वहनीय, समान, समावेशी शिक्षा, उत्तरदायित्व के साथ शिक्षा, शैक्षिक ढांचा (5+3+3+4) की अवधारणा, भाषाई विविधता (त्रि-भाषा सूत्र) को बढ़ावा और भाषा के संरक्षण देने जैसे विषयों पर विशिष्ट रूप से ध्यान दिया गया है । इस नीति में पठन-पाठन की शिक्षक आधारित व्यवस्था की जगह विद्यार्थी आधारित व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि विद्यार्थियों में रचनात्मक क्षमता, तार्किक निर्णय, सामाजिक एवं भावात्मक कौशल विकास, अनुकूल सोच, सृजनात्मक चिंतन एवं नवाचारी क्षमता को मजबूत करने पर विशेष बल दिया जा सके । बहु-विषयक व भविष्यवादी शिक्षा, गुणवत्तापरक शोध (अनुसंधान) और शिक्षा में बेहतर पहुंच के लिए शिक्षा में प्रौद्योगिकी का समान उपयोग किया जा रहा है । सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना, प्रत्येक विद्यार्थी में निहित क्षमताओं को निखारना, सभी स्तरों पर सबकी समरूप पहुँच सुनिश्चित करना, भारतीय शिक्षा व्यवस्था को स्थानीय (लोकल) स्तर से वैश्विक (ग्लोबल) स्तर पर पहुँचाना आदि इसके प्रमुख लक्ष्यों में सम्मिलित है । अतः ये नीति 21वीं सदी के नए भारत की नींव तैयार करने वाली नीति सिद्ध होगी, ऐसा विश्वास है। अब तक हमारी शिक्षा व्यवस्था ‘क्या’ सोचने पर आधारित थी, जबकि इस व्यवस्था (नीति) में ‘कैसे’ वाले सोच-विचार पर विशेष जोर दिया गया है ।

Keynote: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, बुनियादी/मूलभूत चरण, भाषाई विविधता & राष्ट्र निर्माण

Acceptance: 17-06-2024

Published: 08/12/2024

Writer Name

डॉ कृष्ण चंद्र चौधरी और गोविन्द कुमार

Pages

108-142

DOI Numbers

12.2024-32347546